दिल्ली की बीजेपी सरकार अब दिल्ली बोर्ड ऑफ़ स्कूल एजुकेशन का गला घोंटने जा रही है!!
चूँकि दिल्ली बोर्ड का गठन केजरीवाल सरकार ने किया था, सिर्फ़ इसलिए बीजेपी इसे बंद कर रही है।
देश के लगभग सभी राज्यों के अपने परीक्षा बोर्ड हैं, जो उनके सरकारी स्कूलों की बोर्ड परीक्षा करवाते हैं।
दिल्ली एक मात्र राज्य नुमा जगह थी जहाँ सभी सरकारी स्कूल सीबीएसई से एफिलिएटेड थे।
लिहाज़ा दिल्ली के सभी सरकारी स्कूल और ज़्यादातर प्राइवेट स्कूलों के बच्चे सीबीएसई परीक्षा देते रहे हैं।
अब सवाल ये उठता है कि
दोनों मुद्दों का ज़वाब देते हैं, पर
पहले ज़्यादा नंबर और अच्छे नतीजों की बात करते हैं।
तो हक़ीक़त ये है कि 2018 से लेकर अब तक दिल्ली सरकार के स्कूलों के नतीज़े लगातार 90% से ज़्यादा रहे हैं।
यही नहीं, इसी दौरान दिल्ली सरकार के स्कूलों के नतीज़े दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों से बेहतर भी रहे हैं।
ऐसे में केजरीवाल सरकार को कोई ज़रूरत नहीं थी की ख़ुद का बोर्ड सिर्फ़ इसलिए बनाया जाए ताकि नतीज़े बेहतर किए जा सकें।
तो फ़िर क्यों बनाया नया बोर्ड?
अब यही बात बीजेपी को भी समझ नहीं आ रही है। उन्हें हज़म नहीं हो रहा है कि दिल्ली बोर्ड ऑफ़ स्कूल एजुकेशन दरअसल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा प्रस्तावित शैक्षिक आँकलन के सिद्धांत के अनुरूप है।
शिक्षा पर गहराई से काम करते हुए केजरीवाल सरकार ये समझ गई थी कि अगर दिल्ली सरकार के स्कूलों को दुनिया के बेहतरीन शिक्षा मॉडल के समानांतर खड़ा करना है तो “रट कर उगलने” वाली परीक्षा प्रणाली से आगे जाना होगा।
इसलिए केजरीवाल सरकार ने 2021 में नए बोर्ड का गठन किया, वो भी International Baccalaureate के साथ मिलकर, ताकि दुनिया के बेहतरीन मॉडल का लाभ लिया जा सके।
पिछली सरकार की ये सोच थी कि दिल्ली और देश को शिक्षा के माध्यम से “विकसित” बनाया जा सकता है।
पर बीजेपी को लगता है कि जब “विकसित दिल्ली” के नाम का भाषण देने से ही काम चल जाता है, तो नए ज़माने के स्कूल और बोर्ड की क्या ज़रूरत!!
इसलिए आज बीजेपी पूरी तरह तैयार है इस चार साल पुराने दिल्ली बोर्ड ऑफ़ स्कूल एजुकेशन की हत्या करने के लिए।
पर तारीख़ ये याद रखेगी की आज की पीढ़ी के लिए बीजेपी ने कुछ बनाया तो नहीं, हाँ कुछ बने हुए को ज़रूर मिटा दिया…
By Shailendra Sharma
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